वीर्य की सुरक्षा करना ही हैं ब्रम्हचर्य-व्रत का पालन

0 Gautam Soni

 

वीर्य की सुरक्षा करना ही हैं ब्रम्हचर्य-व्रत का पालन

‘वीर्य’ हमारे खान-पान का अंतिम लक्ष्य हैं I अंतिम पड़ाव हैं I पूरा सार हैं I निचोड़ हैं I जब हमारे पूर्ण आहार का यही निष्कर्ष हैं, तब इसकी भली प्रकार रक्षा तो होनी चाहिए I हमारा भोजन चबाये जाने, लार के साथ मिलकर एक के बाद एक धातु बनाता व बदलता जाता हैं I इन सात धातुओ में भोजन का परिवर्तन ही अंतिम अवस्था में ‘वीर्य’ निर्मित होता हैं I हमारे शारीर का सार अंश ही वीर्य हैं I वीर्य के रूप में संग्रहित हैं I अतः अमूल्य हैं I बहुमूल्य भी कह सकते हैं I यही हमेरे स्वास्थ्य, हमारी निरोगता  का आधार हैं I यदि हम इसे बचा पाते हैं तो हम अपने प्रत्येक अंग की सही रक्षा कर सकते हैं I

रज-वीर्य

मनुष्य के भोजन के बाद जो अंतिम धातु वीर्य बनता है, यही संतानोत्पत्ति का स्तम्भ हैं I सभी इन्द्रियों का मूल अंश यही हैं I सम्भोग के समय पुरुष के लिंग से स्खलित होकर वीर्य, स्त्री की योनी में, रज के साथ जा मिलता हैं I वीर्य और रज के सही मिलाप से ही स्त्री गर्भ धारण करती हैं I रज और वीर्य का सही समय पर सम्भोग ही संतान पैदा हो सकने का कारण हैं I आधार हैं I

 अतुल शक्ति का भंडार

हमारे शारीर में विद्यमान तथा बनने वाला वीर्य अपूर्व शक्ति हैं I अतुल शक्ति का भण्डार हैं I जो व्यक्ति अपने विचार शुद्ध रखकर नारी के करीब नहीं जाता वह वीर्य को खंडित होने से बचा सकता हैं I इसकी रक्षा कर सकता हैं I जिस युवक के विचार अशुद्ध होंगे I अश्लील साहित्य पढ़ेगा I बुरे मित्रों में रहेगा I उसे रात को अनेक उत्तेजक बाते याद आयेगी I उसमे उत्तेजना उठेगी I उसे सपने आएंगे I सपनो में वह किसी लड़की से संपर्क बनाकर उसके शरीर को अपने साथ पायेगा I इससे वीर्य का स्खलन होगा I वह कृत्रिम तौर पर सम्भोग करेगा I यही स्वप्नदोष हैं I जो वीर्य की क्षति कर देगा I वीर्य क्षय होगा I बस हो गया ब्रम्हचर्य भंग I यदि यह वीर्य की अतुल शक्ति संभली रहती  है तो हमारे स्वास्थ में वृद्धि होती हैं I निरोगता पाते हैं I

ब्रम्ह की प्राप्ति

एक विद्वान का मानना है यदि यह शक्ति अन्दर-प्रविष्ट हो जाये तो क्या कहने I तो क्या बात है I समझ ले की आत्म-दर्शन का मार्ग  प्रशस्त हो जाता है I हम परमात्मा को पा सकते हैं I ब्रम्हचर्य का अर्थ ‘ब्रम्ह की प्राप्ति’ भी हैं I  केवल वीर्य की रक्षा ही नहीं I दोनों अर्थों में ‘ब्रम्हचर्य’ महन हैं I कोई ब्रम्हचर्य-व्रत का पालन कर सके तो इससे बड़ी उपलब्धि और कोई हो ही नहीं सकती I तभी तो ब्रम्हचर्य को एक बड़ा तप माना गया हैं I संतानोत्पत्ति हेतु गृहस्त में रहते हुए, मौजमस्ती और भोग  की लालसा से, काम-वासना की  पूर्ति के लिए तो नहीं, मगर संतान की उत्पत्ति के लिए यदि पत्नी-संपर्क किया जाए I सहशयन व संभोग किया जाये तो यह भी ब्रम्हचर्य का पालन माना जाता हैं, क्योकि इसका उद्देश्य ठीक हैं I लक्ष्य अच्छा हैं इरादा नेक हैं I

ब्रम्ह की प्राप्ति

विवाह से पूर्व तथा वानप्रस्थ आश्रम में स्त्री-सहवास पूरी तरह मना हैं I इन दोनों आश्रमों में सम्भोग करना ब्रम्हचर्य व्रत को खंडित करना होता हैं I वासनाओ को पालना कामवासना की पूर्ति व संतुष्टि करना ब्रम्हचर्य का क्षय करना हैं I

        `कामवासना का दमन कर परमात्मा की राह पर चलने को ही ब्रम्चार्य कहते हैं I ब्रम्ह की प्राप्ति कर सकता हैं I

भगवान-ही-भगवान

 

1.   पुरुष अपने पक्के संकल्प के साथ चले और अपनी कामवसनाओ को जीतता हुआ ईश्वर में ध्यान लगाये तो उसे ब्रम्ह की प्राप्ति हो सकती हैं I उसे हर चीज में भगवान ही नाजर आए I यहाँ तक की  उसे स्त्री मात्र स्त्री अवास दिखाई  न दे I भगवान का रूप नजर आये I

2.   ऐसा न हो की से काम से पीड़ित बने रहे तथा ऊपर से ब्रम्हचर्य का ढोंग करते रहे I यह गलत होगा I इससे न तो ब्रम्चारी रह सकेंगे और न ही ब्रम्ह की प्राप्ति होगी I

3.   ऊर्ध्व भाग से गमन करना ही वीर्य की क्षय करना है I ऐसा व्यक्ति कामावासनाओ का दास बना रहता हैं I वह ब्रम्ह का कभी पा नहीं सकता I

ब्रम्हचर्य का पालन

ब्रम्हचर्य का पालन करने के लिए ऐसा हो –

1.   मनुष्य सात्विक आहार का सेवन करे I इसी पर निर्भर रहे I

2.   उसके विचार भी सात्विक हो I तभी लक्ष्य-पूर्ति I

3.   ब्रम्हचर्य का पालन करने के लिए काम, क्रोध, लोभ, अहंकार आदि त्यागने पड़ते हैं तभी सफलता मिलती हैं I

4.   उसे स्त्री भोग की वस्तु नजर न आए बल्कि भगवन का ही रूप नजर आए I

5.   काम-वासना मन से मिटनी चाहिए, दिखावे से नहीं I

यह ब्रम्हचर्य नहीं

कुछ व्यक्ति ब्रम्हचारी रहना चाहते हैं मगर...जहां स्त्री देखी फिसल गए... फिर भी कोशिश में लगे रहते हैं I मन उनका कामपूर्ति चाहता हैं Iशारीर भी इसकी आवश्यकता समझता हैं I मगर नियंत्रण करना कठिन हो जाता हैं I ऐसा पूर्व में भी होता रहा I अब भी हो रहा हैं I कई बार व्यक्ति उत्तेजना से इतना दुखी हो जाता हैं कि लिंग तक की काट देता हैं I यदि वह ब्रम्हचारी होने के लिए लिंग काठ बैठता हैं तो वह बिलकुल भी ब्रम्हचर्य क पालन नहीं कर रहा I उसने अपने इन्द्रियों को दबाने के लिए ऐसा किया हैं I वह इन्द्रियों पर विजय नही पा सका I वह ब्रम्हचारी नहीं I

मन में वासना

मन ही सारे शारीर का सञ्चालन करता हैं I वासना की उत्पत्ति मन में न हो, तभी आपका तन, आपका लिंग आपके अधीन होंगे I यदि मन वश में नहीं, स्त्री-सहवास की इच्छा बनी रहती हैं, तब आपकी काया आपके वश में न होगी I आपका लिंग अपने आप उत्तेजित होकर पथभ्रष्ट होने पर विवश कर देगा I आप ब्रम्हचर्य व्रत से भटक जायेंगे I अतः आपका मन शुद्ध हो I इसमें वासना न समाये I न जागे I

ध्यान से

मन को वासनारहित रखने के लिए ध्यान की जरुरत हैं I जो ध्यान कर सकता है, वह मन को भी जीत सकता हैं I बस ध्यान ऐसा लगे कि जब स्त्री सामने आये तो वह भी भगवान का रूप दिखे I वासना की जड़ मन हैं I ध्यान से इसे जीते I यदि कोई व्यक्ति शारीर में कामवासना पूरी नहीं करता या इससे दूर रहता हैं परन्तु उसके मन में काम के विचार बने रहते हैं तो भी वह ब्रम्हचारी नहीं I

ब्रम्हचारी व्यक्ति

1.   सदा शांत बना रहता I

2.   काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार उसके पास नहीं फटकते I

3.   वह सदा रहता हैं I

4.   ब्रम्हचारी व्यक्ति  को रोग परेशान नहीं करते I वह सदा निरोगी बना रहता हैं I




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