दूध का वर्णन आयुर्वेद के अनुसार दूध इस लोक का अमृत है

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 दूध का वर्णन

दूध इस लोक का अमृत है


ईश्वर ने अपनी अनुपम सृष्टि में जीवधारियों की प्राण-रक्षा के लिए जल, फल-फूल, शाक-पात और अनाज आदि जितने उत्तमोत्तम पदार्थ बनाये हैं उनमें 'दूध' सर्वश्रेष्ठ है। दूध समस्त जीवधारियों का जीवन और सब प्राणियों के अनुकूल है। बालक जब तक अन्न नहीं खाता और जल नहीं पीता, तब तक केवल दूध के आश्रय से ही बढ़ता और जीता रहता है। इसी कारण से संस्कृत में दूध को 'बालजीवन' भी कहते हैं। बालकों को जिन्दा रखने, निर्यलों को बलवान करने, जवानों को पहलवान बनाने, बूढों को बुढ़ापे से निर्भय करने, रोगियों को रोग-मुक्त करने और कामियों की काम-वासना पूरी करने की जैसी शक्ति दूध में है, वैसी और किसी चील में नहीं। यह बात निश्चित रूप से मान ली गई है कि दूध के समान पौष्टिक और गुणकारी पदार्थ इस भूतल पर दूसरा नहीं है। सच पूछो तो दूध इस मृत्युलोक का "अमृत" है। जो मनुष्य बचपन से युद्धापे तक दूध का सेवन करते हैं, वे निस्सन्देह शक्तिशाली, बलवान, वीर्यवान और दीर्घजीवी होते हैं।

बाजारू दूध साक्षात् विष है

प्राचीन काल में, इस देश में गोवंश की खूब उन्नति थी। घर-घर गौएँ रहती थीं। जिस घर में गाय नहीं रहती थी, वह घर मनहूस समझा जाता था। गृहस्थ शय्या-परित्याग करते ही, गौ का दर्शन करना अपना पहला धर्म समझते थे। उस जमाने में यहाँ गो-दूधइ तनी अधिकता से मिलता था कि लोग इसको बेचना बुरा समझते थे और गाँव-गाँव में राहगीरों या अतिथियों को मनमाना दूध पिला कर, आतिथ्य सत्कार किया करते थे। यह चाल राजपूताना प्रान्त के कितने ही गाँवों में अब तक पाई जाती है। जैसलमेर और सिन्ध के दान के गाँव-गवई वाले अब भी दूध बेचना बुरा समझते हैं। सन्ध्या समय, जो कोई जिस गृहस्थ के घर पर विश्राम करने जा पहुँचता है, उसका दूध से ही आतिथ्य सत्कार किया जाता है। जो बात आजकल भारत के किसी-किसी कोने में पाई जाती है, वही किसी जमाने में सारे हिन्दुस्तान में थी। उस समय के धनी और निर्धन, सबको दूध इफरात से मिलता था। इस वजह से उस समय के मनुष्य इष्ट-पुष्ट, दीर्घकाद और चलवान होते थे। लेकिन जब से इस देश में विधर्मी और गो-भक्षकों का राज होने लगा, तब से गो वंश का नाश होना, आरम्भ हुआ। गो-वंश के दिन-प्रतिदिन घटते जाने से अब वह समय आ गया है कि भारत के किसी भी नगर में रुपये का चार सेर से अधिक दूध नहीं मिलता। जिसमें भी कलकत्ता, बम्बई और दिल्ली आदि नगरों में तो दूध इस समय रूपये का दो सेर भी मुश्किल से मिलता है। जो दूध रुपये का तीन सेर मिलता है वह भी ठीक नहीं होता। उसमें भी एक चौथाई जल मिला रहता है। इसके सिवा, दुकानदार लोग दूध में और भी कितनी ही खराबियों करते हैं, जिससे स्वास्थ्य-लाभ होने के बदले मनुष्य रोगास्त होते चले जाते हैं। सच बात तो यह है कि इस सराब दूध ने ही आजकल अनेक नये-नये रोग पैदा कर दिये हैं। आजकल जो दूध बाजारों में हलवाइयों की दुकानों पर मिलता है, वह महा निकम्मा और रोगों का खजाना होता है। दूध दुहने वाले चाहे जैसे बिना मंजे, मैले-कुचले वर्तनों में दूध को दुह लेते हैं। ग्वाले या हलवाई उसमें जैसा पानी हाथ लगता है, वैसा ही मिला देते हैं। दूसरे; जो दूध का व्यापार करते हैं, वे गाय-भैसों के स्वास्थ्य की ओर जरा भी ध्यान नहीं देते और रोगीले जानवरों का भी दूध निकालते और बेचते चले जाते हैं। जानवरों के रहने-चरने के स्थान और उनके स्वास्थ्य को वे लोग जरा भी परवाह नहीं करते। जब आजकल बाजारों में दूध का यह हाल है, तब समें स्वण्छ, पवित्र, सुथा समान दूध कहाँ से मिल सकता है ? ऐसे दूध से तो किसी उत्तम कुएँ का जल पीना ही लाभदायक है। आजकल बाजार का दूध पीना और रोग मोल ले कर मृत्यु-मुख में पड़ने की राह साफ करना, एक ही बात है। जिस दूध को हमारे शास्त्रकार " अमृत" लिख गये हैं, वह यह वातारू दूध नहीं। इसे तो यदि हम साक्षात् "विष" कहें, तो भी अत्युक्ति न समझनी चाहिये।

बाजारू दूध बीमारियों की खान है

जो दूध-रूपी अमृत को पान करके, दीर्घजीवी, निरोग और बलवान होना चाहते हैं, उन्हें बाजारू दूध भूल कर भी न पीना चाहिए। सिर्फ उन दुकानों का दूध पीना चाहिये, जिनके यहाँ निरोग जानवरों का दूध आता है; जो दूध दुहने, रखने आदि में हर तरह सफाई का ध्यान रखते हैं और जो जानवरों के रहने का स्थान भी साफ एवं हवादार रखते हैं। कलकले में जो दूध मिलता है, वह ऐसा खराब है कि उसके दुर्गुण लिखते हुए लेखनी काँपती है। कलकतिये ग्वाले, स्थान की कमी के कारण, गायों को ऐसे स्थान में रखते हैं कि, बेचारी जब तक कसाई के हवाले नहीं की जाती, सारी जिन्दगी घोर दुःख भोगती हैं। दूसरे; जिस विधि से दूध निकाला जाता है यह महा घृणित है। जिनको अपने स्वास्थ्य का जरा भी ख्याल हो, उनको ऐसा दूध कभी न पीना चाहिये; क्योंकि ऐसे बाजारू दूध से क्षय, राजयक्ष्मा, जलन्धर, अतिसार, शीतज्वर और हैजा आदि रोग फैलते हैं।

गो-रक्षा बहुत जरूरी है

अव्वल तो आजकल दूध मिलता ही नहीं, और जो मिलता है, वह इतना महंगा होता है कि, धनियों के सिवा गरीब और साधारण अवस्था के लोग उसे खरीद ही नहीं सकते। दूध-घी की कमी के कारण से ही आजकल की भारत-सन्तान आल्पजीवी, क्षुद्रकाय, हतवीर्य और निर्बल होती है। हिन्दू मात्र का ही नहीं, बल्कि भारतवासी मात्र का कर्तव्य है, कि वे गो-वंश की रक्षा और उसकी वृद्धि के उपाय करें; अन्यथा थोड़े दिनों में यह श्लोक पूर्ण रूप से चरितार्थ हो जायगा— “घृतं न भूयते कणे, दधि स्वप्ने न दृश्यते। दुग्धस्य तर्हिका वार्ता तक्रशक्रस्य दुर्लभम्।।" यानी लोग कहने लगेंगें कि हमने तो यी का नाम भी नहीं सुना और दही को स्वज में भी नहीं देखा, इत्यादि। अब भी समय है कि भारतवासी विशेषकर हिन्दू, जो गौ को माता से भी बढ़ कर मानते हैं और उसके दर्शन मात्र से पापों का नाश होना समझते हैं, कृष्ण को साक्षात् भगवान मानते हैं और उनके उपदेश को सबसे बढ़-चढ़ कर समझते हैं, गो-रक्षा की ओर ध्यान दें तथा नगर-नगर और गाँव-गाँव में गौशालायें स्थापित करें; गौओं को कसाइयों के हाथों में जाने से रोके और जो नीच पातकी हिन्दू ऐसा घृणित काम करें, उसे जातिच्युत कर दें; उससे रोटी-बेटी और खान-पान का व्यवहार छोड़ दें; तो निस्सन्देह गो-वंश की रक्षा होने से उनको दूध-घी बहुतायत से मिल सकेगा,उनके देश में अनाज की पैदावार अति से अधिक हो जायगी। अन्यथा कोई समय ऐसा आयेगा, जब हिन्दुओं को दूध ही नहीं, बल्कि अत्र भी न मिलेगा और उनकी भावी सन्तान अन्न की कमी के कारण, अकाल मृत्यु के पंजे में फंस कर, शायद भारत से हिन्दू जाति का नाम ही लोप कर देगी। गाय के दूध, घी, मक्यान और माते से हम लोग पलते हैं और रोग-रूपी राक्षसों के पंजे से छुटकारा पाते हैं। गप का गोचर हो हमारे देश में खेती के लिए अच्छी बार का काम देता है। गाय के चमड़े से हम लोगों के पाँवों की रक्षा होती है। गाय के दूध घी, मक्खन आदि से कितनी ही जटिल और असाध्य मीमारियाँ आराम होती हैं। जिस गो-वंश पर हमारा और हमारी भावी सन्तानों का जीवन-निर्भर है, उसकी रक्षा और वृद्धि का उपाय न करना, अपने लिए भायी आपत्ति की राह साफ़ करना और अपने गई मृत्यु-मुख में डालने की तैयारी करना नहीं तो और क्या है ? यदि हम लोग अपने आप गो-वंश-रक्षा पर कमर कस से तो मुसलमान हमारा कुछ भी नहीं विराट सको, यरिक समय पा कर वे हमको सहायता देने लगेंगे और इस काम में भारत गवर्नमेंट को सहायता की तो कुछ जरूरत ही नहीं पड़ेगी। लेकिन जो लोग आप कुछ नहीं कर सकते, केवल दूसरों का आत्रम ताकते हैं: उनसे कुछ भी नहीं हो सकता और उनको कोई सहायता भी नहीं देता। हमारा इस लेख को इतना बढ़ाने का विचार न था. किन्तु यह हमारी इच्छा से अधिक बढ़ गया। अब हमारे पास इसे और बढ़ाने के लिये स्थान नहीं है। अलमन्दों को इशारा ही काफी होता है। यदि हिन्दू लोग ऐसे समय में, जब कि उनके सिर पर एक समदर्शी और न्यायशीला गवर्नमेंट का हाथ है, कोई काम गोवंश की रक्षा और वृद्धि का न कर सकोगे, तो कब कर सकेंगे? ऐसा राम-राग्य और सुयोग उन्हें फिर न मिलेग। उन्हें यह भूल कर भी न कहना चाहिये कि जब राजा स्वयं गो-भक्षी है, जब हम क्या कर सकते हैं? राजा निस्सन्देह गो-भक्षक है, किन्तु उसने हम लोगों को, हमारे धर्म की रक्षा के पूर्णाधिकार दे रखे हैं। हम कानून को मानते हुए, उसकी सीमा के अन्दर, गो-वंश की भलाई के बहुत कुछ काम कर सकते हैं।

गो-रक्षा पर भारतवासियों को, खास कर हिन्दुओं को, विशेष रूप से ध्यान देना चाहिये; क्योंकि उनके करने योग्य कामों में "गो-रक्षा" सबसे अधिक जरूरी काम है।

दूध के गुण.

हम ऊपर दूध की बहुत कुछ तारीफ़ लिख आये हैं; किन्तु नीचे हम शास्त्रानुसार उसके लाभ और भी दिखाना चाहते है। आजकल के लोग कमजोरी मिटाने के लिये वैद्य, हकीमों और डाक्टरों की शरण में जाते हैं, उनकी खुशामद करते हैं और उनके आगे भेंट-पर-भेंट घरते हैं, तो भी अपने मन को मुराद नहीं पाते। इसका यही कारण है कि असल ताकृत लाने वाली चीज़ की ओर ध्यान नहीं देते और अण्ट-शर औषधियों को रखा कर अपने तई दूसरे रोगों में फंसा लेते हैं। जो चौत उनके लिये

अध्यर्थ महोौषधि है, जो उनकी कमजोरी हरने में रामबाण का काम कर सकती है, उसकी ओर उनकी नज़र ही नहीं जाती। 

प्रिय पाठकों ) संसार में जितनी धातुपौष्टिक, वीर्यवर्द्धक, बुढ़ापे और बीमारियों को जीतने वाली एवं स्त्री-प्रसंग की शक्ति बढ़ाने वाली दवाइयाँ हैं, उनमें “दूध” ही प्रथम स्थान पाने योग्य है। पंडितवर लोलिम्बराज अपनी कान्ता से कहते हैं-

सौभाग्यपुष्टिबलशुक्रविवर्धनानि, कि सन्ति नो भुवि बहूनि रसायनानि। कन्दर्पवर्धिनि ! परन्तु सिताज्ययुक्ताद दुग्धादृते न मम को5पि मतः प्रयोग:॥ 

“ हे कन्दर्प को बढ़ाने वाली / इस पृथ्वी पर सौभाग्य, एष्टि, बल ओरे वीर्य बढ़ाने वाली अनेक ओषधियाँ है। मगर मेरी राय में “घी ओर पिश्री मिले हुए दूध” से बढ़ कर कोई नहीं हे।” 

कोकशास्त्र में कोक के रचयिता “कोका” पण्डित ने भी लिखा हे-... 

धातुकरन और बलधरन, मोहि पूछे जो कोय। “'पय' समान या जगत में, है नहीं दूसर कोय॥ 

भावप्रकाश में दुध की गुणावली इस प्रकार लिखी है-

दुग्धं॑ सुमधुरं स्निग्धं वातपित्तहरं सरम। सद्यः शुक्रकरं शीतं सात्म्यं सर्वशरीरिणाम!॥ जीवन वृंहणं बल्य॑ मेध्यं बाजीकरं परम!। वयस्थापनमायुष्यं सन्धिकारि रसायनम्‌। विरेकवान्तिबस्तीनां सेव्यमोजोविवर्द्धनम॥ 

“दूध--मीठा ओर चिकना, बादी ओर पित्त का नाश करने वाला, दस्तावर, वीर्य को जल्दी पैदा करने वाला, शीवल, सब प्राणियों को अनुकूल, जीव-रूप, युष्टि करने वाला, बलकारक, बुद्धि को उत्तम करने वाला, अत्यन्त वाजीकरण, आयु को स्थापन करने वाला, आयुष्य सन्‍्धानकारक, रसायन ओर वमन, विरेचन तथा वस्ति-क्रिया को समान ही ओज बढ़ाने वाला है।” उसी ग्रन्थ में और भी लिखा है--

“जीर्णज्वर, मानसिक रोग, उन्माद, शोष, मूर्च्छा, भ्रम, संग्रहणी, पीलिया, दाह, प्यास, हृदय-रोग, शूल, उदावर्त्त, गोला, वस्तिरोग, बवासीर, रक्तपित्त, अतिसार, योनि-रोग, परिश्रम, ग्लानि, गर्भर्नाव-.इनमें मुनियों ने दूध सर्वदा हितकारी कहा है।” और भी लिखा है, कि बालक, बूढ़े, घाव वाले, कमज़ोर भूख या मैथुन से दुर्बल हुए मनुष्य के लिये दुध सदा अत्यन्त लाभदायक होता है। 

वाग्भूट ने लिखा है 

स्वादु पाकरसं स्निग्धमोजम्यं धातुवर्द्धनम्‌॥ वातपित्तहर वृष्यं एलेष्मलं गुरु शीतलम्‌॥ 

“दूध पाक में स्वादु (जायकदार) स्वाद-रस से स्युक्त, चिकना, प्रराक्रम बढ़ाने-वाला, वीर्य की वृद्धि करने वाला, बादी और पित्त को हरने वाला, वृष्य, कफ-कारक, भारी और शीतल होता है।” 

इसी भाँति, समस्त शास्त्रों में दृध के गुण गाये गए हैं। वैद्यक-शास्त्र में गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ऊँटनी, घोड़ी, स्त्री.और हथिनी आदि के आठ प्रकार के दूध लिखे हैं। हम सब तरह क॑ दुूधों का संक्षिप्त वर्ण करके इस लेख को समाप्त करेंगे। 

 गाय का दूध 

आठ प्रकार के दुधों में गाय का दूध सबसे उत्तम समझा गया है। “वाग्भट! नामक ग्रन्थ के रचयिता वाग्भट लिखते हैं: 

प्राय: पयोउत्र गव्यं तु जीवनीयं रसायनम] क्षत क्षीण हित॑ मेध्यं बल्य॑ं स्तन्यकरं परम्‌॥ श्रमभ्रममदालक्ष्मीश्वासकासातितृट क्षु ध:। जीर्णज्चरं मूत्रकृच्छे रक्‍तपित्त् च नाशयेत्‌॥ 

“सब तरह के दूधों में गाय का दूध अत्यन्त बल बढ़ाने वाला और रसायन है। घाव से दुखित मनुष्य को हितकारी है, पवित्र है, बल बढ़ाने वाला है, स्त्री के स्तनों में दूध पैदा करने वाला है, रस में मीठा है, और थकान, भम, मद, दरिद्रता, श्वास, खाँसी, अति प्यास और भूख को शान्त करता तथा जीर्ण ज्वर, मूत्रकृच्छ (सूज़ाक) और रक्तपित्त का नाश करता है।” “भावप्रकाश ” में लिखा है---गाय का दूध विशेष करके रस और पाक में मीठा, शीतल, दुध बढ़ाने वाला, वात-पित्त और खून-विकार का नाश करने वाला, वात आदि दोषों, रस-रक्त आदि धातुओं, मल और नाडियों को गीला करने वाला तथा भारी होता है। गाय के दुध को जो मनुष्य हमेशा पीते हैं, उनके सम्पूर्ण रोग नष्ट हो जाते हैं और उन पर बुढ़ापा अपना दखल जल्दी नहीं जमा सकता।" 

ख़वासुल अदबिया” यूनानी चिकित्सा या हिकमत का निघण्टु है। उसमें लिखा “गाय का दूध किसी कृदर मीठा और सफेद मशहूर है। वह सिल, तपेदिक और फेफड़े के जख्मों को मुफीद है तथा--गम--शोक---को दूर करता और ख़फकान-पागलपन रोग में फायदा करता है; मैथुन-शक्ति बढ़ाता और चमड़े की रंगत साफ करता, शरीर को मोटा करता, तबियत को नर्म करता, दिल-दिमागू को मजबूत करता, मनी--वीर्य--पैदा करता और जल्दी हज़म होता है।” 

हम नमूने के तौर पर गाय के दूध से आराम होने वाले चन्द रोग लिख कर बताते हैं। इनके सिवा और भी बहुत-से रोग गो-दुग्ध से आराम होते हैं। “मुजर््बात अकबरी ”, “इलाजुल गुर्बा” आदि आधुनिक ग्रन्थों तथा प्राचीन वैद्यक-शास्त्र में और भी बहुत-से ऐसे तरीके लिखे हैं, जिनको हम विस्तार-भय से यहाँ नहीं लिख सकते। 

 गाय के दूध से रोग-नाश 

गाय के दूध में ना-बराबर घी और मधु (शहद) मिला कर पीने से या घी और चीनी मिला कर पीने से बदन में खूब ताकत आती है एवं बल, वीर्य ओर पुरुषार्थ इतना बढ़ता है कि लिख नहीं सकते। 

जिस मनुष्य की आँख में जलन रहती हो, यदि वह शख्स कपड़े की कई तह करके, उसे गाय के दूध में तर करके आँखों पर रक्खे और ऊपर से फिटकरी पीस कर पट्टी पर बुरक दे, तो ४-६ दिन में नेत्र की जलन कम हो जाती है। 

गाय का दूध औटा कर गरम-गरम पीने से हिचकी आराम हो जाती है। 

गाय के दूध को गरम करके, उसमें मिश्री और काली मिर्च पीस कर मिलाने और पीने से ज्ञुकाम में बहुत लाभ होते देखा गया है। 

गाय के दूध में बादाम की खीर पका कर ३-४ दिन खाने से आधासीसी या आधे सिर का दर्द आराम हो जाता है। 

अगर खून की गर्मी से सिर में दर्द हो, तो गाय के दूध में रूई का मोटा फाहा भिगो कर सिर पर रखने से फायदा होता है। किन्तु सन्ध्या समय सिर धो कर मक्खन लगाना ज़रूरी है। 

अगर किसी तरह भोजन के साथ काँच का सफूफ (चूरा) खाने में आ जाय, गाय का दूध पीने से बहुत लाभ होता है। 

 गाय के दुध में घी मिला कर पिलाने से अशुद्ध गन्धक का विष उतर जाते है

गाय के दुध में सॉठ घिस कर गाढ़ा-गाढ़ा लेप करने से, अत्यन्त प्रबल सिर-दर्द् भी आराम हो जाता है। 

 गायों की किस्मों के अनुसार दूध के गुण 

कोई गाय काली, कोई पीली, कोई लाल और कोई सफेद होती है। मतलब यह है कि, जितने प्रकार की गायें होती हैं, उतने ही प्रकार के दूध होते हैं; यानी रंग-रंग की गायों के दृध के गुण भी भिन्‍न-भिन्‍न होते हैं। अत: पाठकों के लाभार्थ, नीचे सब तरह की गायों के दूधों के गुणावगुण खुलासा लिखते हैं-

काली गाय का दूध--काली गाय का दूध विशेष रूप से वात-नाशक होता है। और रंग की गायों की अपेक्षा काली गाय का दूध गुण में श्रेष्ठ समझा जाता है। जिनको वात-रोग हो, उनको काली गाय का दुध पिलाना उचित है। 

सफेद गाय का दूध--सफेद गाय का दृध कफकारक और भारी होता है, यानी देर में पचता है। शेष गुण समान ही होते हैं। 

पीली गाय का दूध--पीली गाय का दूध और सब गुणों में तो अन्य वर्णों की गायों के समान ही होता है; केवल यह फर्क होता है कि इसका दूध विशेष करके बात-पित्त को शान्त करता है। 

लाल गाय का दूध--लाल गाय का दुध भी, काली गाय की तरह वातनाशर्क होता है। फर्क इतना ही है कि काली गाय का दुध विशेष रूप से बातनाशक होता है। चितकबरे रंग की गाय के दूध में भी लाल गौ के दूध के समान गुण होते हैं। 

जांगल देश की गायों का दूध--जिस देश में पानी की कमी हो और दरख्तों की बहुतायत न हो एवं जहाँ वात-पित्त-सम्बन्धी रोग अधिकता से होते हों, उस देश को “जांगल देश” कहते हैं। मारवाड प्रान्त जांगल देश की गिनती में है। जांगल देश की गाय का दुध भारी होता है अर्थात्‌ दिक्कत से पचता है। 

अनूप देश की गायों का दूध--जिस देश में पानी की इफरात हो, वृक्षों की बहुतायत हो और जहाँ वात-कफ के रोग अधिकता से होते हों, उस देश को “अनूप देश” कहते हैं। बंगाल प्रान्त अनूप देश गिना जाता है। अनूप देश की गायों का दूध जांगल देश की गायों के दृध से अधिक भारी होता है। 

अन्य प्रकार की गायों का दूध--छोटे बछड़े वाली या जिसका बछड़ा मर गया हो, उस गाय का दुध त्रिदोषकारक होता है। बाखरी गाय का दूध त्रिदोष-नाशक, तृप्तिकारक और बलदायक होता है। बरस दिन की ब्याई हुई गाय का दूध गाढ़ा, बलकारक, तृप्तिकारक, कफ बढ़ाने वाला और त्रिदोषनाशक होता है। खल और सानी खाने वाली गाय का दुध कफकारक होता है। कड़ब, बिनोले और घास खाने वाली गाय का दूध सब रोगों में लाभदायक होता है। जवान गाय का दूध मीठा, रसायन और त्रिदोषनाशक होता है। बूढ़ी गाय के दूध में ताकत नहीं होती। गाभिन गाय का दूध, गाभिन होने के तीन महीने पीछे पित्तकारक, नमकीन ओर मीठा तथा शोष करने वाला होता है। नई ब्याई हुई माय-का दूध रूखा, दाह-कारक, पित्त फरने-वाला-और खून-विकार पैदा करने वाला होता है। जिस गाय को ब्याये बहुत दिन हो गये हों, उस गाय का दूध मीठा, दाहकारक और नमकीन होता है। 

भैंस का दूध

 भैंस का दूृध गाय के दुध से अधिक मीठा, चिकना, वीर्य बढ़ाने वाला, भारी, नींद लाने वाला, कफकारक, भूख बढ़ाने वाला और ठण्डा है। हिकमत की 

किताबों में लिखा है, कि भैंस का दुध कुछ मीठा और सफेद होता है और तबियत को ताज़ा करता है। 

बकरी का दूध 

बकरी का दूध कसैला, मीठा, ठण्डा, ग्राही और हल्का होता है। रक्तपित्त, अतिसार, क्षय, खाँसी और बुखार को आराम करता है। बकरी चरपरे और कड॒वे पदार्थ खाती है, इसी कारण से बकरी का दूध सब रोगों का नाश करता है। यह तो वैद्यय की बात है। हिकमत की किताबों में लिखा है कि बकरी का दूध गर्मी के रोगों में बहुत फायदेमन्द है और गर्म मिज्ञाज वालों को ताकत देता है। इसके गरगरे (कुल्ले) करने से हलक यानी कण्ठ के रोगों में बहुत फायदा होता है। यह पेट को नर्म करता है; हलक (कण्ठ) की खराश और मसाने के जख्म को मुफीद हे तथा मुँह से खून आने, खाँसी, सिल (कलेजे की सूजन और उसमें मवाद पड़ना) और फेफड़े के ज़ख़्म में लाभदायक है। 


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धन्यवाद Gk Ayurved




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